डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज), Demand of Separate Capital and High Court : पंजाब से अलग होने के बाद साल 1966 में हरियाणा अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन अलग राज्य बन जाने के बाद हरियाणा और पंजाब में पिछले कई दशकों से कई मुद्दों पर खींचतान जारी है और जारी विवादों का हल अभी तक नहीं हो पाया। पंजाब से अलग होने के बाद एक आपसी सहमति के बाद तय हुआ हुआ कि दोनों राज्यों के अलग हो होने के बाद संसाधनों पर 60 फीसदी पर पंजाब का अधिकार होगा वहीं 40 फीसदी पर हरियाणा का।
कुछ संसाधन अब तक भी संयुक्त रूप से इस्तेमाल किए जा रहे हैं जिन पर दोनों राज्यों का हक है। इसी कड़ी में अब हरियाणा पिछले कुछ समय से अलग राजधानी, विधानसभा और हाईकोर्ट की मांग ये कहते हुए उठा रहा है कि हरियाणा को भी बराबरी का हक चाहिए, क्योंकि ज्यादातर एसेट्स में हक के मामले में पंजाब हावी है, जबकि हरियाणा अब तक अपने हक से मरहूम है। इसी कड़ी में हरियाणा बनाओ अभियान मंच के बैनर तले बुद्धिजीवी वर्ग ने चुनाव से ऐन पहले हरियाणा के लिए एक अलग से राजधानी और हाईकोर्ट की मांग उठाई है। वहीं ये भी बता दें देश के 23 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में हाईकोर्ट है।
हरियाणा की अलग राजधानी व हाईकोर्ट की मांग अपने आप में पेचीदा व बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। चूंकि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और जारी चुनाव सत्र के अनुसार छठे चरण में 25 मई और पंजाब में 1 जून को सभी सीटों पर 1 जून को चुनाव है तो मामले का राजनीतिक रंग लेना भी स्वाभाविक है। उपरोक्त संगठन के एक सदस्य ने कहा कि वो लोगों से अपील करेंगे कि हरियाणा के लिए अलग राजधानी और हाईकोर्ट की मांग को अपने घोषणा पत्र में रखने वाली राजनीतिक पार्टियों को ही वोट करें। आगे उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टियों के विधायक व्यक्तिगत स्वार्थों के मद्देनजर नहीं चाहते कि अलग राजधानी बने।
हरियाणा के लिए अलग से हाईकोर्ट व राजधानी होने का हवाला ये कहते हुए दे रहे हैं कि अलग हाईकोर्ट से देशभर में हरियाणा की अलग पहचान बनेगी। चंडीगढ़ में आकर हरियाणा के लोगों को अपनापन महसूस नहीं होता। साथ ही कहा कि अगर हरियाणा में कहीं भी हाईकोर्ट और राजधानी बनते हैं तो प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
अगर कहीं प्रदेश के मध्य में हाईकोर्ट व राजधानी स्थापित होते हैं तो लोगों को चंडीगढ़ आने के दौरान होने वाली असुविधा व दिक्कतों से छुटकारा मिलेगा। बता दें कि ये मामले लंबे समय से चर्चा में हैं कि अगर राजस्थान से सटे और हरियाणा के दूर-दराज के जिलों पलवल, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, फरीदाबाद, गुरूग्राम, फतेहाबाद व नारनौल समेत करीब एक दर्जन जिलों से मामलों की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट व किसी अन्य काम के लिए चंडीगढ़ आने के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
हरियाणा बनाओ अभियान संगठन ने हरियाणा की अलग राजधानी और हाईकोर्ट के लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और सभी संबंधित बार एसोसिएशन को भी पत्र लिखकर अपनी मांग से अवगत कराया है। पत्र में कहा गया कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अंतर्गत तहत उसी दिन से ही संयुक्त पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ को केंद्र शासित क्षेत्र (यूटी) घोषित कर दिया गया और इसे दोनों उत्तराधिकारी प्रदेशों (वर्तमान पंजाब और हरियाणा) की सांझी राजधानी बना दिया गया।
यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक हाईकोर्ट होना अनिवार्य है तथापि उपरोक्त अधिनियम के अंतर्गत दोनों प्रदेशों का साँझा हाईकोर्ट (पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय) बना दिया गया। यह अस्थाई व्यवस्था की गई, लेकिन 57 वर्ष बीत जाने के बाद भी यथास्थिति बनी हुई है। इस निर्णय से दोनों प्रदेशों में असंतोष और अधूरेपन, वैमनस्य और दुर्भावना पैदा हुई है। हाईकोर्ट में करीब 6 लाख मामले लंबित हैं और अलग-अलग समस्याओं को लेकर प्रदेशभर के लोगों को चंडीगढ़ आना पड़ता है।
ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार द्वारा पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 में संशोधन कर नई राजधानी और हाईकोर्ट बनाया जाए। बता दें कि उपरोक्त मामले को लेकर हरियाणा बनाओ संगठन के सदस्यों बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन रणधीर सिंह बधरन, हरियाणा के पूर्व मुख्य सचिव बीएस चौधरी और पूर्व उप सचिव सरकार एमएस चोपड़ा प्रोफेसर सुभाष सैनी, हरियाणा सरकार वकील संघ के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र बैरागी ने भी “हरियाणा बनाओ अभियान” के बैनर तले प्रेस कांफ्रेंस के जरिए अपनी बात रखी।
साल 1966 में अलग राज्य बनने के बाद हरियाणा का पंजाब के साथ कई अहम मुद्दों पर लगातार विवाद जारी है। सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) को लेकर विवाद किसी से छिपा नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद पंजाब ने आज तक हरियाणा को एसवाईएल में उसका हिस्सा नहीं दिया। इसके अलावा विधानसभा व सचिवालय की इमारत में हिस्सेदारी को लेकर पंजाब व हरियाणा दोनों लंबे समय से आमने-सामने हैं। अलगाव के वक्त हुए समझौते के तहत हरियाणा की सचिवालय व विधानसभा की इमारत में 40 फीसदी हिस्सेदारी बनती है, लेकिन वास्तविकता में ये 30 फीसदी से भी कम है। इसके अलावा हरियाणा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में पंचकूला, अंबाला व यमुनानगर जिलों के कॉलेज जोड़ने की मांग लगातार कर रहा है, लेकिन पंजाब के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा।
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