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karnal lok Sabha Election 1967 History : इतिहास बना था करनाल लोकसभा का चुनाव, जिसकी मतगणना सुप्रीमकोर्ट में हुई थी

• LAST UPDATED : April 10, 2024
  • लोकसभा चुनाव और करनाल राजनीति को लेकर कुछ रोचक किस्से

इशिका ठाकुर, India News (इंडिया न्यूज), karnal lok Sabha Election 1967 History : आजादी के बाद पुराने समय में लोकसभा चुनाव और राजनीति को लेकर कुछ ऐसे भी रोचक किस्से हैं, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं। एक ऐसा ही किस्सा करनाल लोकसभा से भी जुड़ा हुआ है जोकि अपने आप में एक इतिहास बना हुआ है। कभी ऐसा नहीं हुआ था कि मतगणना सुप्रीमकोर्ट में जज के पैनल के सामने हुई हो।

karnal lok Sabha Election 1967 History : प्रत्याशी रामेश्वर नंद ने 1962 में कांग्रेस को हराया था

यह 1962 का दौर था, जब जनसंघ पार्टी से प्रत्याशी रामेश्वर नंद ने कांग्रेस पार्टी के वीरेंद्र कुमार को हराया था। यह जीत बहुत बड़ी जीत थी। इस जीत के बाद सांसद बने स्वामी रामेश्वर नंद ने संसद को अपने वक्तव्य के साथ पूरी पार्लियामेंट को हिलाकर रख दिया था। स्वामी रामेश्वर नंद को जहां इस बात की ख्याति मिली, वहीं कांग्रेस पार्टी के पास कोई ऐसा नेता भी नहीं रह गया था कि जो स्वामी रामेश्वर नंद को टक्कर दे सके।

ये कहना है सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता का

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता राममोहन राय बताते हैं कि उस दौर में स्वामी रामेश्वर नंद को इस बात का भी गुमान हो गया था कि उन्हें कोई नहीं हरा सकता। उस समय की प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी भी अगर उनके सामने चुनाव लड़े तो वह भी हार जाएगी।

1967 में कांग्रेस ने माधव राम शर्मा को उतारा था मैदान में

अब 1967 में लोकसभा चुनाव हुए, कांग्रेस बड़ी असमंजस में थी कि करनाल लोकसभा सीट पर किस प्रत्याशी को उतारा जाए जो स्वामी रामेश्वर नंद को हरा सके। तो कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता सेनानी रहे लोकल कार्यकर्ता माधव राम शर्मा को स्वामी रामेश्वर नंद के सामने करनाल लोकसभा सीट से मैदान में उतारा था।

आर्थिक दृष्टि से कमजोर थे माधव राम

माधव राम शर्मा आर्थिक दृष्टि से बड़े ही कमजोर थे और वह विकलांग भी थे क्योंकि ट्रेन हादसे में उनकी एक टांग चली गई थी। पर वह अपने कार्यों की दृष्टि से बहुत ही होनहार थे। 1967 में जब रामेश्वर नंद और माधवराम शर्मा के बीच टक्कर हुई तो उस समय करनाल और पानीपत विधानसभा में विधायक भी जनसंघ पार्टी के थे। पानीपत में उसे समय विधायक फतेहचंद हुआ करते थे और गली, चौराहे-नुक्कड़ों पर चुनावी नारा यही गूंजता था-फतेह फतेह चंद की जय रामेश्वरम नंद की, 1967 में चुनाव के बाद जब परिणाम आया तो उसने सबको अचंभित कर दिया। पंडित माधव राम शर्मा ने इस चुनाव में स्वामी रामेश्वर नंद को मात्र 55 वोटों से हरा दिया।

इस हार से पूरी जन संघ पार्टी में हलचल मच गई। खुद कांग्रेस पार्टी को भी इस जीत पर विश्वास नहीं हो रहा था और जनसंघ पार्टी के प्रत्याशी स्वामी रामेश्वर नंद को यह जीत हजम नहीं हो रही थी। उन्होंने दोबारा से मतगणना करवाई। मामला कोर्ट में पहुंचा तो फिर कोर्ट से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट में काउंटिंग में माधवराम शर्मा 5,000 से ज्यादा वोटों से जीते

1 साल मामले की सुनवाई चली, बेल्ट पेपर के बॉक्स भी कोर्ट में ही जमे रहे। 1 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट के जज मोहम्मद हिदायतुल्लाह की बेंच के सामने लगातार कई दिनों तक फिर से बैलट पेपर की काउंटिंग की गई। काउंटिंग में माधवराम शर्मा 5,000 से भी ज्यादा वोटों से जीत गए। यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास और देश की लोकसभा चुनाव के इतिहास में पहला ऐसा लोकसभा चुनाव रहा, जिसकी मतगणना सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई थी।

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