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Mihir Bhoj Statue : मिहिर भोज मामले पर गुर्जर-राजपूतों में बढ़ती रार के बीच चढ़ता सियासी बुखार

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  • चुनाव से पहले दोनों समुदायों के बीच मिहिर भोज विवाद के चलते सियासत भी गरमाई, मामले पर तमाम सियासी दलों की नजर

  • दोनों समुदाय का कई विधानसभा सीटों पर प्रभाव

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Mihir Bhoj Statue, चंडीगढ़ : हरियाणा में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं। चुनावों की आहट के बीच तमाम सियासी दल तैयारियों में जुटे हैं। इसी बीच इन दिनों राजपूत और गुर्जर समुदाय के बीच जारी एक विवाद ने सियासी गलियारों में काफी हलचल मचा रखी है। दरअसल पूरा विवाद सम्राट मिहिर भोज के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगाने के बाद उपजा और ये रुकने के नाम नहीं ले रहा। दोनों समुदाय के नुमाइंदे एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। इसी बीच दोनों समुदाय के बीच जारी इस विवाद के अब इसके हरियाणा में सियासी मायने और राजनीतिक नफा-नुकसान भी लगाया जा रहा है।

ये भी बता दें कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है। हाईकोर्ट भी कह चुका है कि क्यों न अदालत प्रतिमाओं के अनावरण पर रोक लगा दे। दोनों ही समुदाय इस बात पर अड़े हैं कि मिहिर भोज उनके समुदाय से थे। राजपूत समुदाय के लोगों की निरंतर मांग है कि मिहिर भोज की प्रतिमा के आगे गुर्जर शब्द हटाकर वहां हिंदू सम्राट या फिर सम्राट मिहिर भोज ही लिखा जाए। वहीं गुर्जर समाज के नेताओं का कहना है कि उनके नाम के आगे गुर्जर प्रतिहार शब्द रहना चाहिए, क्योंकि यही उचित है। बता दें कि पूरा मामला यूपी से शुरू हुआ था। इसके बाद हरियाणा में उत्तरी भारत के 9वीं शताब्दी के शासक सम्राट मिहिर भोज को लेकर राजपूत और गुर्जर समाज में विवाद शुरू हुआ। दोनों ही समाज के लोगों का दावा है कि राजा मिहिर भोज उनकी जाति के थे।

प्रदेश की कई सीटों पर पर दोनों समुदाय के लोगों का प्रभाव

अगर राजनीतिक रूप से देखें तो गुर्जर और राजपूत दोनों समुदाय का हरियाणा में कई सीटों पर प्रभाव है। सियासी तौर पर दोनों का महत्व है। अनुमानित तौर पर दोनों समुदाय प्रदेश की कुल जनसंख्या का करीब 7 फीसदी हैं और वोट बैंक के लिहाज से दोनों का अलग-अलग जिलों में प्रभाव है। दोनों जनसंख्या के लिहाज से करीब-करीब बराबर हैं। राजपूत समुदाय कैथल, करनाल, अंबाला, कुरुक्षेत्र, भिवानी और पानीपत आदि जिलों में है। गुज्जर समुदाय की ज्यादा आबादी पंचकूला, यमुनानगर, पानीपत, अंबाला और फरीदाबाद जिलों में है। इस लिहाज से तमाम सियासी दल इस पूरे विवाद पर बारीक से निगाह बनाए हुए हैं।

दोनों समुदाय से करीब 10% विधायक

हरियाणा में अलग-अलग सीटों से दोनों समुदाय के कई विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। हरियाणा में कुल 90 विधायक चुनकर आते हैं और इनमें से दोनों समुदाय से करीब 10 फीसदी विधायक इनमें से गुर्जर समुदाय से तिगांव से राजेश नागर, नारायणगढ़ से शैली चौधरी, कालका से प्रदीप चौधरी, कैथल से लीलाराम गुज्जर, जगाधरी से कंवरपाल गुर्जर और समालखा से धर्म सिंह छोकर विधायक हैं। इनमें से तीन विधायक शैली चौधरी, प्रदीप चौधरी और धर्म सिंह छौक्कर कांग्रेस विधायक हैं।

वहीं बाकी 3 राजेश नागर, कंवर पाल गुज्जर और लीलाराम गुर्जर भाजपा विधायक हैं। वहीं कंवरपाल शिक्षा मंत्री हैं। इनके अलावा कृष्णपाल गुर्जर फरीदाबाद से भाजपा सांसद हैं। उनको केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया है, वहीं राजपूत समुदाय की बात करें तो भाजपा से सोहना से विधायक संजय सिंह और निर्दलीय विधायक नयनपाल रावत पृथला से हैं। रावत ने भाजपा को समर्थन दे रखा है।

सरकार ने मामले पर बना रखी है कमेटी

वहीं हरियाणा सरकार ने मामले के समाधान को लेकर सम्राट मिहिर भोज के बारे में ऐतिहासिक तथ्यों की जांच के लिए सात सदस्यीय समिति का गठन किया है। सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि मंडलायुक्त, करनाल कमेटी के अध्यक्ष होंगे जबकि पुलिस महानिरीक्षक, करनाल रेंज, करनाल इसके उपाध्यक्ष होंगे और उपायुक्त, कैथल इसके सदस्य सचिव होंगे। पुलिस अधीक्षक, कैथल, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के इतिहास के दो प्रोफेसर नामतः  राजीव लोचन और  प्रियतोष शर्मा और दोनों पक्षों के दो वकील दोनों समुदायों के प्रतिनिधि के रूप में इसके सदस्य होंगे। समिति इस आदेश के जारी होने की तिथि से 4 सप्ताह की अवधि के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

मिहिर भोज विवाद का सियासी नफा-नुकसान

मिहिर भोज मामले का अपना सियासी महत्व भी है। जब विवाद शुरु हुआ था तो कई जगहों पर भाजपा के समर्थक राजपूत समुदाय के लोगों व नेताओं ने इस्तीफे देना शुरू कर दिया। व्यापक पैमाने पर लगातार इस तरह की जानकारी सामने आई कि भाजपा समर्थक राजपूत समुदाय के लोग पदों से इस्तीफा दे रहे हैं। इसके राजनीतिक नफे नुकसान को देखते भाजपा ने मामले की समाधान की पहल शुरु की।

वहीं मामले को लेकर अब गुर्जर समुदाय भी अपनी मांगों को लेकर मुखर हो रहा है। मामले को लेकर शुरूआत में कुरुक्षेत्र में गुज्जर समुदाय की बैठक हुई थी। सरकार की भी कोशिश है कि आने वाले चुनावों को देखते हुए किसी समुदाय की नाराजगी लेने से बचे। अनुमानित तौर पर दोनों समुदाय के करीब 7 फीसद वोट हैं।

गुर्जर और राजपूत दोनों जता रहे मिहिर भोज पर हक

गुर्जर और राजपूत समुदाय दोनों की मांग है कि मिहिर भोज को जाति का माना जाए। राजपूतों की मांग है कि मिहिर भोज गुर्जर नहीं, वो राजपूत थे तो ऐसे में उनके नाम के आगे हिंदू राजा लिखा जाए। वहीं गुर्जर समुदाय का कहना है कि सरकार द्वारा कमेटी बनाने को लेकर जो आदेश जारी किए गए हैं, उनमें राजपूत को क्षत्रिय जाति बताया गया है। उनको राजपूत लिखा जाना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय शब्द जाति नहीं बल्कि वर्ण है। साथ ही जो कमेटी बनाई गई है, उसमें गुर्जर समुदाय से भी नुमाइंदा हो।

इसके अलावा इतिहास को सही तरीके से परिभाषित किया जाए और मिहिर भोज गुर्जर राजा ही थे। इतिहासकारों का मानना है फिलहाल मामला बेहद सेंसिटिव है। इस तरह के मामले में बेहद गहन इतिहास संबंधित रिसर्च की आवश्यकता होती है। नेताओं को मामले को इतिहासकारों पर छोड़ देना चाहिए। उनको अपने राजनीतिक फायदे को लेकर इतिहास से गलत छेड़छाड़ की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इतिहास को गलत तरीके से परिभाषित करने से समाज को नुकसान होगा।

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