India News Haryana (इंडिया न्यूज), Modi Cabinet Ministers : हरियाणा में लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अबकी बार बेहतर नहीं रहा, अबकी बार पार्टी के 10 में से 5 कैंडिडेट ही सांसद बन पाए, लेकिन मोदी 3.0 में भगवा पार्टी ने हरियाणा से पांच सांसदों में से तीन को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर सबको चौंका दिया है। हरियाणा से सांसद बने पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा राव इंद्रजीत सिंह और कृष्ण पाल गुर्जर को भी जगह दी गई है।
महज 10 लोकसभा सीटों वाले हरियाणा से 3 सांसदों को मंत्री बनाने के पीछे कई कारण रहे हैं, लेकिन मुख्य रूप से पार्टी की नजर अब अक्टूबर माह में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिकी है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में पार्टी को जो डेंट लगा है कहीं न्र कहीं इसका प्रभाव आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पढ़ना तय माना जा रहा है। ऐसे में पार्टी ने तीन सांसदों को मंत्री बनाकर आपदा प्रबंधन रणनीति अख्तियार की है। उल्लेखनीय है कि शपथ ग्रहण समारोह में अग्रिम पंक्ति में बैठे मनोहर लाल ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। गुरुग्राम से छह बार के सांसद राव इंद्रजीत सिंह, जिन्होंने पहले दो मोदी सरकारों में भी मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी, वे भी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में कैबिनेट का हिस्सा हुए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संसदीय चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर इसके दूरगामी संभावित प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने मंत्रिपरिषद में तीन सांसदों को शामिल किया है, ताकि इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।
उपरोक्त के अलावा, यह उल्लेख करना उचित है कि लोकसभा परिणामों के बाद आयोजित समीक्षा बैठकों में यह बात सामने आई है कि पार्टी पिछले कुछ समय से जीटी रोड बेल्ट और अहीरवाल में अपनी पकड़ खो रही है, जो पहले इसके गढ़ थे। लोकसभा चुनाव में भी स्पष्ट नजर आया है कि इन दोनों जगह कांग्रेस ने अपनी स्थिति पहले की तुलना में मजबूत कर ली है।
चूंकि जातिगत फैक्टर राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका के साथ-साथ निर्णायक भी है, इसलिए पार्टी ने पहले की तरह राज्य में गैर जाट राजनीति पर अपना ध्यान केंद्रित रखा, जो इस बात से स्पष्ट है कि धर्मबीर सिंह जो भाजपा से हैं और जाट समुदाय से हैं, इस बार मंत्री पद के लिए एक मजबूत दावेदार थे, लेकिन लगातार तीसरी जीत दर्ज करने के बावजूद, उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं दी गई। यह उल्लेख करना उचित है कि राज्य की जातिगत गतिशीलता तीन प्रमुख समुदायों – जाट, अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ जटिल है।
अनुमान है कि हरियाणा में 28 से 30 प्रतिशत जाट मतदाता हैं, उसके बाद ओबीसी और दलित हैं। ओबीसी आबादी लगभग 30 प्रतिशत है, उसके बाद 21 प्रतिशत दलित समुदाय है जबकि ब्राह्मण समुदाय की आबादी 8 से 10 प्रतिशत, पंजाबी 7 प्रतिशत, बनिया 5 प्रतिशत, राजपूत 4 प्रतिशत और शेष आबादी अन्य जातियों की है। मुख्य रूप से हिंदू बहुल राज्य होने के बावजूद, हरियाणा में एक बड़ी मुस्लिम आबादी है, जो कुल आबादी का लगभग 5 से 6 प्रतिशत है।
उपरोक्त के क्रम में यह उल्लेखनीय है कि मनोहर लाल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करके भाजपा ने अंबाला, पानीपत, कुरुक्षेत्र, करनाल, यमुनानगर, पंचकूला और कैथल जिलों (जिसे जीटी बेल्ट के रूप में जाना जाता है) में आने वाली कम से कम 30 सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है।
इसी तरह, राव इंद्रजीत सिंह को लगातार तीसरी बार मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी ने दो निशाने साधने की कोशिश की है- पहला दक्षिण हरियाणा में 10 से 14 सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करना और दूसरा, अहीरवाल बेल्ट में पार्टी के दिग्गजों के बीच संतुलन बनाना। इसी तरह, फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर जो कि गुर्जर समुदाय से आते हैं, को शामिल करके पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उससे सटे राजस्थान में आने वाले फरीदाबाद, गुरुग्राम, गाजियाबाद, नोएडा में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है, जहां पर गुर्जर समुदाय का वोट निर्णायक होता है। इसके अलावा, सोहना, रेवाड़ी, नांगल चौधरी और गुरुग्राम विधानसभा पर भी गुर्जर वोट बैंक का अच्छा खासा प्रभाव है।
प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरण किस तरह अहम भूमिका में है, इसका अंदाजा भाजपा और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह टिकट बांटे हैं, उससे लगता है। बेशक, भाजपा ने सबसे पहले सभी 10 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की, लेकिन पार्टी ने यह केवल जातिगत समीकरणों के आधार पर किया, ऐसा राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं।
भाजपा ने 4 सीटों पर जाट और ब्राह्मण (दो-दो सीटें) तथा चार सीटों पर पंजाबी, वैश्य, यादव और गुर्जर उम्मीदवार उतारे थे। इसी तरह, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के तहत आने वाली 9 सीटों में से चार सीटों पर जाट और ब्राह्मण (दो-दो सीटें) को टिकट दिया था। दोनों गुटों ने चार-चार सीटों पर यादव, गुर्जर, पंजाबी और वैश्य को टिकट दिया था। चूंकि हरियाणा में अंबाला और सिरसा दो सीटें एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, इसलिए दोनों दलों ने एससी उम्मीदवार ही मैदान में उतारे थे।
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