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HCCI Chairman Vinod Dhamija : बिजनेस में विश्वास ही सबसे बड़ी चुनौती : विनोद धमीजा

• LAST UPDATED : April 10, 2024
  • साइकिल से 54 किमी रोज नैन गांव से पानीपत 300 रुपए की नौकरी करने आते थे, क्योंकि टेक्सटाइल के बारे में जानना था
  • रिक्शा का किराया 5 रुपए बचाने के लिए खुद ढोते थे धागे के बोरे
अनुरेखा लांबरा,India News (इंडिया न्यूज),HCCI Chairman Vinod Dhamija : क्या करें परिस्थितियों हमारे अनुकूल नहीं है, कोई हमारी सहायता नहीं करता, कोई मौका नहीं मिलता आदि शिकायतें निरर्थक हैं। अपने दोषों को दूसरों पर थोपने के लिए इस प्रकार की बातें अपने दिल जमाई के लिए की जाती हैं। दूसरों को सुखी देखकर हम परमात्मा के न्याय पर उंगली उठाने लगते हैं, पर यह नहीं देखते कि जिस परिश्रम से इन सुखी लोगों ने अपने काम पूरे किए हैं, क्या वह हमारे अंदर है? ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करते, उसने वह आत्मविश्वास सबको मुक्त हाथों से प्रदान किया है, जिसके आधार पर उन्नति की जा सके। समाज में इस तरह के लातादाद मिसालें हैं, जिन्होंने अपनी हिम्मत और विश्वास के बलबूते बेशुमार तरक्की और शोहरत पाई है।
HCCI Chairman Vinod Dhamija
जज्बे और जुनून के आगे परिस्थितियां भी घुटने टेक गई
पानीपत की एक ऐसी ही शख्सियत से आपको रूबरू कराते हैं, जिनके जज्बे और जुनून के आगे परिस्थितियां भी घुटने टेक गई। उनको खुद पर विश्वास ना होता तो आज टेक्सटाइल इंडस्ट्री का नामचीन चेहरा ना बनते। जी हां हम बात कर रहे हैं हरियाणा चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के चेयरमैन, साहिल इंटरनेशनल के निदेशक, ओल्ड इंडस्ट्रियल एरिया मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के सरपरस्त, हरियाणा पंजाबी सभा के स्टेट सरपरस्त, रोटरी 3080 के सहायक गवर्नर विनोद धमीजा की। वैसे तो विनोद धमीजा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं, उनको पानीपत का बिजनेस टाइकून कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने संघर्ष की कितनी सीढ़ियों को पार किया है, उससे वाकिफ होना सबके लिए जरूर प्रेरक रहेगा।
  • आज खुद की 4 यूनिट, इसके पीछे 43 साल का संघर्ष
  • टेक्सटाइल इंडस्ट्री का नामचीन चेहरा हैं विनोद धमीजा 
HCCI Chairman Vinod Dhamija : सफलता के पीछे 43 साल का संघर्ष
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती, हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता की ये पंक्तियां विनोद धमीजा के जीवन पर एकदम सटीक बैठती हैं। धमीजा एक्सपोर्टर्स को बाइक से दरी पहुंचाता था। आज उनकी खुद की 4-4 यूनिट है, क्योंकि इसके पीछे 43 साल का संघर्ष है।
HCCI Chairman Vinod Dhamija

मात्र 300 रुपए की नौकरी की 

पानीपत जिला के गांव नैन, मतलौडा में जन्मे विनोद धमीजा ने नैन गांव के ही सरकारी स्कूल से 10वीं, आईबी कॉलेज से बीकॉम की शिक्षा ग्रहण की। टेक्सटाइल के बारे में जानने का जुनून इतना कि उसके लिए अपने नैन गांव से रोजाना साइकिल से पानीपत आते – जाते थे। करीब तीन घंटे में 27 किलोमीटर आना और फिर तीन घंटे में जाना। उस दौर में मात्र 300 रुपए की नौकरी, सिर्फ इसलिए कि टेक्सटाइल के बारे में जानना था। हालांकि नौकरी नहीं करूंगा यह तो उन्होंने 1980 में ग्रेजुएशन के दौरान ही तय कर लिया था। विनोद धमीजा बताते हैं कि “मेहनत करना उन्होंने अपने पिताजी संतराम से सीखा। उनकी मेहनत याद आती है रोंगटे खड़े कर देती है। मैं भी बैलों से हल चला चुका हूं। जब इंडस्ट्री लगाई तो बोरे में धागे भरकर बाइक से ढोता था।”

हारा वही, जो लड़ा नहीं

धमीजा का मानना है कि हारा वही, जो लड़ा नहीं। धमीजा बताते है कि तीन साल तक नौकरी की, फिर 25 हजार रुपए लोन लेकर 20 जून 1983 को अपनी मां के नाम पर फैक्ट्री का नाम “निर्मल हैंडलूम” रखा। यह इतना आसान नहीं था, पूरेवाल कॉलोनी में फैक्ट्री लगाने के लिए खुद ही दीवार में मिट्टी लगाई। 10 लूम लगाई और दरी बनाना शुरू कर दिया। रिक्शा का किराया 5 रुपए बचाने के लिए पुरानी राजदूत पर धागे के बोरे ढोता था और दरी भी पहुंचाता था। पहले ही महीने 37 हजार रुपए का लाभ कमाया, फिर तो रुकने का नाम ही नहीं लिया।
HCCI Chairman Vinod Dhamija

बिजनेस में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी

बिजनेस में उन लोगों से सहमत नहीं, जो ये कहते हैं कि पैसे के कारण बिजनेस नहीं कर पा रहा हूं। मेरा मानना है कि बिजनेस में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है। आपको विश्वास जीतना है, चाहे वह कच्चा माल देने मार्केट वाले आपके पीछे पैसे लगाएंगे, लगाते भी हैं। लोगों के साथ रिलेशन डिवेलप करना आसान है, लेकिन उसे निभाना सबसे मुश्किल। आज भी 39 साल पुराना लूम मास्टर काम कर रहा है। 1983 में जिन 5 लोगों से कच्चा माल लेना शुरू किया था, आज भी उनसे ले रहे हैं। 1996 में जिन 6 बायरों के साथ एक्सपोर्ट शुरू किया, आज भी उन्हें माल एक्सपोर्ट कर रहे हैं। ये है विश्वास की ताकत। बिजनेस में विश्वास ही सबसे बड़ी चुनौती है। विनोद की नजर में बिजनेस की परिभाषा ही विश्वास है।

हारने वालों को भी मौका देना चाहिए

धमीजा ने समाज के प्रति संदेश देते हुए कहा कि अपने बच्चे का भला करना है, समाज का भला करना है तो युवाओं को तपाओ, भटके हुए को रास्ता दिखाओ। उन्होंने कहा कि हमेशा दूसरों को मदद के लिए हाथ बढ़ाने चाहिएं। कोरोना में ऑक्सीजन की कमी का पता चला तो हमने पेड़ लगाए। चंदा दे देने, क्लब चलाने से ही सामाजिक सरोकार पूरे नहीं हो जाते। जो लोग किसी कारण से अपने काम में फेल हो गए हैं, क्या हम उन्हें एक मौका देकर सुधार नहीं सकते। हारने वालों को भी मौका देना चाहिए, तभी तो वो जीतेंगे। उनका विश्वास जीतेगा।
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