1. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद मनोहर
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद मनोहर का राजनीति में अनुभव और गुर वाकई प्रशंसनीय है। साल 1947 की त्रासदी में वह रोहतक के गांव निंदाणा में आकर बस गए थे और यहीं से उन्होंने खेतीबाड़ी कर परिवार का पालन-पोषण किया। इस बीच उन्होंने अध्ययनरत रहते हुए चर्चा-परिचर्चाओं में भाग लेना शुरू किया। हालांकि मनोहर लाल डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही खेती करें। शिक्षा के महत्व पर अपने पिता को विश्वास में लेकर रोहतक के नेकीराम शर्मा राजकीय महाविद्यालय में प्रवेश लिया। आरएसएस से मनोहर लाल सन् 1977 में जुड़े। उन्होंने पीएम मोदी के साथ मिलकर साल 1966 में काम करना शुरू किया था।
मनोहर लाल डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही खेती करें। शिक्षा के महत्त्व पर अपने पिता को विश्वास में लेकर रोहतक के नेकीराम शर्मा राजकीय महाविद्यालय में प्रवेश लिया। वे परिवार के एकमात्र पहले ऐसे सदस्य थे, जिन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई की। मेडिकल कॉलेज की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए मनोहर लाल ने दिल्ली का रुख किया। यहां से उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन पूरी की।
साल 1977 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर अपने निजी जीवन को जनसेवा के लिए समर्पित कर दिया। साल 1980 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। बतौर प्रचारक 14 वर्ष तक अपनी सेवाएं प्रदान कीं। इसके बाद वह साल 1994 में भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हुए। हरियाणा में वे पार्टी के संगठन महामंत्री रहे।
मनोहर लाल पंजाब, हरियाणा और छत्तीसगढ़ राज्यों के चुनावों में भाजपा की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 2004 में उन्हें दिल्ली और राजस्थान समेत 12 राज्यों का प्रभारी बनाया गया। उस समय उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर संघ के प्रसिद्ध विचारक बाल आप्टे के नेतृत्व में कार्य किया। इसके तत्काल बाद उन्हें जम्मू एवं कश्मीर,पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़ और हिमाचल प्रदेश के लिए क्षेत्रीय संगठन महामंत्री का उत्तरदायित्व सौंपा गया। उनके कार्यकाल के दौरान इन राज्यों में पार्टी ने कई सफलताएं प्राप्त कीं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में लगभग 40 वर्षों से हरियाणा और राष्ट्र की अनवरत सेवा कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव-2014 के दौरान हरियाणा चुनाव अभियान समिति का सीएम मनोहर लाल को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके कुशल चुनाव अभियान की बदौलत हरियाणा में भाजपा ने 10 में से 7 लोकसभा सीटें जीत कर सफलता हासिल की। उन्होंने 13वीं हरियाणा विधानसभा के लिए अक्तूबर, 2014 में हुए चुनाव में करनाल विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार चुनाव लड़ा और 63,773 मतों से विजयी हुए।
21 अक्तूबर, 2014 को हरियाणा भाजपा विधायक दल के सर्वसम्मति से नेता चुने गये। उन्होंने 26 अक्तूबर, 2014 को हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। मनोहर लाल हरियाणा के इतिहास में पहले ऐसे नेता हैं, जो पहली बार विधायक बने और मुख्यमंत्री का पद संभाला। अब 2024 में मनोहर लाल को सीएम की कुर्सी से उतारकर लोकसभा का टिकट थमा दिया गया था। कांग्रेस ने मनोहर लाल के सामने यूथ प्रदेश अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा को उतारा था, लेकिन मनोहर दिव्यांशु को 2.32 लाख वोटो से हराकर विजयी बन गए।
2. राव इंद्रजीत का रूतबा भी कम नहीं, तीसरी बार केंद्रीय मंत्री के रूप में ली शपथ
दक्षिण हरियाणा की गुरुग्राम लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर राव इंद्रजीत सिंह 8 लाख 8 हजार 336 वोट पाकर एक बार फिर से चुनाव जीत गए हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार राज बब्बर को 75 हजार 79 वोटों से शिकस्त दी है। इस चुनाव में राज बब्बर को को कुल 7 लाख 33 हजार 257 वोट मिले हैं. राव इंद्रजीत सिंह साल 2009 से लगातार गुरुग्राम लोकसभा सीट से चुने जा रहे हैं और केंद्र सरकार में में राज्य मंत्री बन रहे हैं। अहिरवाल राज्य के शासक और स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के वंशज इंद्रजीत सिंह के पिता राव विरेंद्र सिंह हरियाणा राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे।
11 फरवरी 1951 को पैदा हुए राव इंद्रजीत सिंह ने सनावर के लॉरेंस स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की। बाद में उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आ गए। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने शूटिंग का भी खूब रियाज किया. वह एक अच्छे शूटर हैं. साल 1990 से 2003 तक वह भारतीय शूटिंग टीम के सदस्य रहे और कॉमनवेल्थ शूटिंग चैंपियनशिप में देश के लिए कांस्य पदक भी जीते. तीन साल लगातार वह स्कीट में नेशनल चैंपियन रहे हैं और SAF गेम्स में तीन गोल्ड मेडल जीते।
उन्होंने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के साथ हरियाणा विधानसभा चुनाव से की. वह चार बार विधायक चुने गए और साल 1982 से 1987 तक हरियाणा सरकार में मंत्री बने। उन्होंने पहली बार 1998 में लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाया. इसमें वह जीत कर संसद पहुंचे. इसके बाद साल 2004 और 2009 में भी वह कांग्रेस के टिकट पर जीते. उन्होंने गुरुग्राम के कथित डीएलएफ-रॉबर्ट वाड्रा लैंड डील मामले में सीबीआई जांच की मांग की और पार्टी में गतिरोध के बाद उन्होंने सितंबर 2013 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
3. कृष्णपाल गुर्जर ने भी राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली
फरीदाबाद लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी कृष्ण पाल गुर्जर ने कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह को हराते हुए 1.72 लाख वोट से जीत हासिल की। भाजपा को 788569 व कांग्रेस को 615655 वोट मिले, जजपा प्रत्याशी से नोटा आगे निकला। उल्लेखनीय है कि फरीदाबाद को हरियाणा की बहुत महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक माना जाता रहा है। हालांकि यहां शुरू से ही कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर रही है। 1977 से 2019 के बीच यहां कुल 12 लोकसभा चुनाव हुए हैं जिनमें छह बार कांग्रेस तो वहीं पांच बार भाजपा ने जीत दर्ज की है।
राजनीति के खिलाड़ी कृष्णपाल गुर्जर ने छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत की थी। बीए, एलएलबी कृष्णपाल गुर्जर नेहरू कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे। पार्षद से लेकर सांसद तक का सफर तय करते हुए केंद्रीय राज्यमंत्री पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं। कृष्णपाल गुर्जर नेहरू कॉलेज में छात्र संगठन के अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्ष 1994 में नगर निगम के गठन के साथ ही उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। वर्ष 1996 में गुर्जर ने मेवला महाराजपुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे।
पहली बार विधानसभा पहुंचे गुर्जर बंसीलाल सरकार में मंत्री बने। 2000 में फिर से मेवला महाराजपुर से विधायक बने। दोनों बार उन्होंने पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह को पटखनी दी थी। मगर वर्ष 2005 में उन्हें महेंद्र प्रताप सिंह के सामने हार का मुंह देखना पड़ा था। 2008 में मेवला महाराजपुर सीट खत्म कर दी गई तो गुर्जर ने 2009 में तिगांव सीट से चुनाव लड़ा और 818 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी ललित नागर को हराकर तीसरी बार विधायक बने। उसी दौरान वे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी बने।
वर्ष 2014 में पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट थमाया। मोदी लहर पर सवार कृष्णपाल गुर्जर सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए प्रदेश में सबसे अधिक 4.66 लाख मतों के अंतर से जीते थे। आलम यह था कि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी और दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना को इतने वोट भी नहीं मिल थे कि उनकी जमानत बच जाती। भड़ाना को इस चुनाव में 1,85,643 वोट मिले थे। अब एक बार फिर पार्टी ने उन पर दांव लगाया है।
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